ऋषिकेश:58 वर्ष की अवस्था में रूमैटिक हार्ट डिसीज की समस्या से जूझ रहे एक रोगी के हृदय के वाॅल्व खराब हो चुके थे। समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण उसके फेफड़ों में पानी भर गया और गुर्दे खराब होने से पेशाब में भी रुकावट होने लगी। चलने-फिरने में असमर्थ हुआ तो जीवन बचाने के लिए कई अस्पतालों में दौड़ भी लगाई, लेकिन उपचार कहीं नहीं मिला। ऐसे में एम्स ऋषिकेश के कार्डियोलाॅजी विभाग के चिकित्सकों ने बिना ओपन हार्ट सर्जरी के माध्यम से रोगी के हृदय (हार्ट) के वाॅल्व सफलतापूर्वक रिप्लेसमेंट कर उसे नया जीवन प्रदान करने में सफलता पाई है। रोगी अब स्वस्थ है और बिना किसी सहारे के चलने-फिरने लगा है।
उत्तर प्रदेश के जनपद पीलीभीत के रहने वाले विभुरंजन पाल पिछले 8-10 महीनों से दिल की बीमारी की गंभीर समस्या सहित शरीर के विभिन्न जटिल रोगों से ग्रसित थे। उनके हृदय के वाॅल्व खराब हो चुके थे और इलाज के अभाव में एक वाॅल्व सिकुड़कर छोटा हो चुका था। हालत यह थी कि हृदय की कार्य क्षमता घटकर महज 20 प्रतिशत ही रह गई थी। आस-पास के अस्पतालों ने उन्हें बताया कि उनकी बीमारी अब लाइलाज हो चुकी है और उनका ठीक होना असंभव है। उन्हें बताया गया कि उन्हें अब जीवनभर दवाओं पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। ऐसे में अंतिम उम्मीद लिए वह एम्स ऋषिकेश पहुंचे। यहां बीते माह 10 अगस्त को कार्डियोलाॅजी विभाग की ओपीडी में मौजूद कार्डियोलाॅजिस्ट प्रोफेसर भानु दुग्गल को उन्होंने अपनी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें बताई और जीवन बचाने के लिए एम्स को अपनी आखिरी उम्मीद बताया।
इस बाबत जानकारी देते हुए एम्स के कार्डियोलाॅजी विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ सर्जन डाॅ. भानु दुग्गल ने बताया कि मरीज की स्थिति ऐसी थी, कि वह बहुत ही हाई रिस्क में था और उसकी बाईपास सर्जरी नहीं की जा सकती थी। ऐसे में मरीज की सभी आवश्यक जाचें कराने के बाद उन्हें बिना ओपन हार्ट सर्जरी के माध्यम से हार्ट में वाॅल्व रिप्लेसमेंट कराने की सलाह दी गई। डाॅ. भानु ने बताया कि रोगी के गुर्दे भी खराब हो चुके थे। साथ ही फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण उसकी सांस लगातार फूल रही थी। दिल अपने आकार से ज्यादा फैला हुआ था और खराब हो चुका था। इन हालातों में मरीज की कभी भी कार्डियक डेथ होने का खतरा बना था।
डाॅ. भानु ने बताया कि रोगी को कुछ दिन गहन चिकित्सा यूनिट में भर्ती कर हालत स्थिर करने की प्रक्रिया की गई और फिर रोगी तथा उसके परिजनों की सहमति पर हाई रिस्क लेते हुए वाॅल्व रिप्लेसमेंट करने का प्लान तैयार किया गया। उन्होंने बताया कि आईसीयू में एक सप्ताह तक दवाओं द्वारा रोगी की हालत स्थिर करने के बाद 20 अगस्त को उसके हार्ट के दो वाॅल्व सफलतापूर्वक रिप्लेसमेंट कर दिए गए। बेहद ही जटिल तरीके से की गई इस प्रक्रिया में पहली बार भारत में निर्मित स्वदेशी वाॅल्वों का उपयोग किया गया है। डाॅ. भानु के अनुसार वाॅल्व रिप्लेसमेंट के बाद पहले दिन ही रोगी का गुर्दा सही ढंग से कार्य करने लगा और जरूरत न होने की वजह से मरीज की ऑक्सीजन सपोर्ट भी हटा दी गई। उन्होंने बताया कि रोगी अगले रोज से ही बिना किसी सहारे के चलने लगा था। सर्जरी के लगभग 20 दिनों बाद अब वह बिना किसी सपोर्ट के सीढ़ियां चढ़ने लगा है। यहां तक कि रोगी के अन्य अंग भी बेहतर कार्य कर रहे हैं। स्वास्थ्य लाभ मिलने पर रोगी को बीते दिनों अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। वाॅल्व रिप्लेसमेंट करने वाली टीम में डाॅ. भानु दुग्गल के अलावा डाॅ. योगेश चंद, डा. विजय, डाॅ. अनिरूद्ध आदि शमिल थे।
संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने इस संबंध में कार्डियोलाॅजी विभाग के अनुभवी डाॅक्टरों की टीम की प्रशंसा की और कहा कि हार्ट से संबंधित विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए समय रहते इलाज कराना बहुत उपयोगी होता है। उन्होंने कहा कि हृदय रोगियों के बेहतर इलाज के लिए एम्स में विश्वस्तरीय तकनीक आधारित कैथ लेब की सुविधा भी उपलब्ध है। हृदय रोग से ग्रसित रोगियों को एम्स की इस सुविधा का लाभ उठाना चाहिए।