देहरादून। चमोली जनपद में जड़ी-बूटी की खेती कर रहे 48 काश्तकारों को केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने पंजीकृत कर लिया है। अब ये काश्तकार देश के किसी भी कोने में जड़ी-बूटियां बेच सकेंगे। चमोली के उच्च हिमालय क्षेत्रों के गांवों के काश्तकार बड़े पैमाने पर कुटकी व अन्य जड़ी-बूटियों की खेती कर रहे हैं। ये काश्तकार प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये का कारोबार कर रहे हैं।बीते वर्ष चमोली जनपद के काश्तकारों ने करीब दो करोड़ रुपये की कुटकी बेची। देवाल ब्लॉक के घेस और वाण गांव में करीब 10 हेक्टेयर भूमि पर काश्तकार कुटकी का उत्पादन कर रहे हैं। प्रत्येक तीन साल में तैयार होने वाली कुटकी की कीमत 1200 रुपये प्रति किलोग्राम है। श्रीनगर गढ़वाल की ह्यूमन हिलर्स कंपनी किसानों से कुटकी खरीदती है। गढ़वाल विश्वविद्यालय में औषधीय एवं सगंध पादक के प्रोफेसर डा. जीतेंद्र सिंह बुटोला ने बताया कि विवि कुटकी की खेती में सहयोग देता है। आयुष मंत्रालय ने चमोली के 48 काश्तकारों को पंजीकृत किया है।
देवाल ब्लॉक के वाण गांव के काश्तकार पान सिंह वर्ष 2009 से कुटकी और कूट की खेती कर रहे हैं। पान सिंह का कहना है कि बेमौसमी बारिश और वन्य जीवों से परेशान होकर उन्होंने पारंपरिक खेती के बजाय जड़ी-बूटी की खेती पर ध्यान दिया। पिछले 13 साल में वे लगभग 20 लाख रुपये की कुटकी बेच चुके हैं। अब वे जटामासी की खेती भी करने लगे हैं। गांव के करीब 70 काश्तकारों ने कुटकी की खेती शुरू कर दी है। वे ग्रामीणों को जटामासी, कूट, कुटकी की पौधे भी वितरित करते हैं। जटामासी अनिंद्रा, गर्मी और तनाव दूर करने की दवा बनाने के काम आती है।